THE SINGLE BEST STRATEGY TO USE FOR विश्व का इतिहास

The Single Best Strategy To Use For विश्व का इतिहास

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इकबालनामा को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है- पहले भाग में मुतामिद खाँ ने अमीर तैमूर के इतिहास से लेकर बाबर और हुमायूँ तक का इतिहास लिखा है, दूसरे भाग में अकबर के शासन का और तीसरे भाग में जहाँगीर के शासन का विवरण दिया है। मुतामिद खाँ को जहाँगीर ने आश्रय दिया था, इसलिए उसने जहाँगीर के व्यक्तित्व का अतिरंजित वर्णन किया है।

ख्वांदमीर ने कानून-ए-हुमायूँनी (हुमायूँ के नियम) नामक अन्य पुस्तक की भी रचना की थी, जिसमें हुमायूँकालीन अनेक नियमों, कानूनों और दरबार के रीति-रिवाजों का विवरण मिलता है। यद्यपि कानून-ए- हुमायूँनी मुगल सम्राट हुमायूँ की जीवनी है और उसमें हुमायूँ की प्रशंसा अधिक है, फिर भी, ख्वांदमीर के विवरण विश्वसनीय प्रतीत होते हैं।

अकबर एक योग्य महान शासक था, जिसने मुगल साम्राज्य को सर्वाधिक विस्तारित किया था। इसके साथ ही अकबर ने हिंदू एवं मुस्लिमों के बीच की दूरियों को कम करने के लिए दीन-ए-इलाही धर्म की स्थापना करके धार्मिक सहिष्णुता एवं उधार राजनीति का भी परिचय दिया था।

औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुहम्मद साकी मुस्तैद खाँ ने ‘मआसीर-ए-आलमगीरी’ की रचना की। इस ग्रंथ में औरंगजेब के ग्यारहवें वर्ष से लेकर बीसवें वर्ष तक की घटनाओं का संक्षिप्त विवरण मिलता है। यह ग्रंथ सरकारी दस्तावेजों पर आधारित है। चूंकि मुस्तैद खाँ चालीस वर्ष तक बादशाह के साथ रहा था, इसलिए उसके विवरण विश्वसनीय हैं।

अंग्रेजी अनुवाद – एडवर्ड सी सचाऊ ने ‘अलबरूनी इंडिया: एन अकाउन्ट आॅफ रिलीजन’ नाम से।

यह फिरोजशाह तुगलक की आत्मकथा है। इस पुस्तक को लिखने का फिरोजशाह का मुख्य उद्देश्य स्वयं को एक आदर्श मुसलिम शासक सिद्ध करना था। इस किताब से उसके प्रशासन सम्बंधित कुछ जानकारियां मिलती हैं।

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किरान-उस-सादैन (दो शुभ सितारों की बैठक), आमिर ख़ुसरो द्वारा लिखी गयी इस किताब में बंगाल के सूबेदार बुगरा खां और उसके बेटे कैकुबाद की भेंट और समझौते का वर्णन है। यह ग्रंथ भी पद्य में लिखा गया है।

तक की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का विवरण दिया है। उसने तबकात-ए-नासिरी को नासिरुद्दीन महमूदशाह को समर्पित किया था।

कुछ वर्षों बाद सरवानी ने तोहफा-ए-अकबरशाही को तारीख-ए-शेरशाही (शेरशाह का इतिहास) के नाम से संबोधित किया और वह इसी नाम से प्रसिद्ध है। मुगल बादशाह की सेवा में रहने और एक सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद, सरवानी ने नई राजनीतिक और प्रशासनिक संस्थाओं और नीतियों की शुरुआत के लिए शेरशाह की प्रशंसा की है।

‘मुंतखब-उत-तवारीख’ का लेखक अब्दुल कादिर बदायूँनी है, जो अकबर के शासनकाल में अरबी, फारसी और संस्कृत का प्रसिद्ध विद्वान् और इमाम था। इस ग्रंथ को ‘तारीख-ए-बदायूँनी’ के नाम से भी जाना जाता है। बदायूँनी, अबुल फजल का छात्र था और अकबर द्वारा अबुल फजल को अधिक सम्मान दिये जाने के कारण उससे ईर्ष्या रखता था। धीरे-धीरे बदायूँनी कट्टरपंथी सुन्नियों के समूह का समर्थक बन गया, जिससे रुष्ट होकर अकबर ने उसे दरबार में रहकर विभिन्न ऐतिहसिक लेखों का फारसी में अनुवाद करने के काम पर लगा दिया। बदायूँनी ने अपने कई मूल ग्रंथों के अलावा अरबी और संस्कृत के अनेक ग्रंथों का फारसी में अनुवाद भी किया है।

एम. अशरफ ने लिखा है, ‘‘आईने अकबरी सामाजिक इतिहास का प्रतीक है।’’ ब्लोचमेन के अनुसार, ‘‘यह भिन्न-भिन्न प्रकार के अध्ययन का खजाना है।’’ मुन्तखाब-उत-तवारीख[संपादित करें]

लेकिन फिर भी इससे इन दोनों प्रदेशों के बीच सांस्कृतिक आदान - जनरल नॉलेज प्रदान बहुत ही कम ही हुआ था।

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